चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट >> पंचतंत्र की कहानियां पंचतंत्र की कहानियांशिवकुमार
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पंचतंत्र की कहानियों का बेमिसाल संकलन रंगीन चित्रों सहित...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राचीन काल में एक राजा था। उसके तीन पुत्र थे। तीनों बड़े मूर्ख थे।
पढ़ाई में उनका मन ही नहीं लगता था। कोई भी शिक्षक उन्हें पढ़ा न सका।
अन्त में विष्णु शर्मन नामक एक विद्वान ने केवल छह महीनों में राजकुमारों
को पूर्णरूपेण शिक्षित करने का उत्तरदायित्व लिया।
वह प्रतिदिन राजकुमारों को नई-नई कहानियां सुनाते। जिनके पात्र मुख्यतः पशु-पक्षी होते थे। राजकुमार इन कहानियों को बड़े ध्यान से सुना करते। फलस्वरूप कुछ ही समय में तीनों सफल जीवन के गुणों से परिचित हो गये। लोक-व्यवहार, आत्मविश्वास, सम्पन्नता, दृढ़-संकल्प, मित्रता एवं विद्या के सही संयोग से ही मनुष्य मित्रता एवं विद्या के सही संयोग से ही मनुष्य सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।
इसी कौशल को इन कहानियों में बड़ी बानगी से उतारा गया है। यही कहानियां पंचतंत्र के नाम से जानी जाती हैं। शताब्दियों पुरानी ये कहानियां, जो संस्कृत में लिखी गई थीं, आज भी विश्व-साहित्य की अमर थाती हैं।
वह प्रतिदिन राजकुमारों को नई-नई कहानियां सुनाते। जिनके पात्र मुख्यतः पशु-पक्षी होते थे। राजकुमार इन कहानियों को बड़े ध्यान से सुना करते। फलस्वरूप कुछ ही समय में तीनों सफल जीवन के गुणों से परिचित हो गये। लोक-व्यवहार, आत्मविश्वास, सम्पन्नता, दृढ़-संकल्प, मित्रता एवं विद्या के सही संयोग से ही मनुष्य मित्रता एवं विद्या के सही संयोग से ही मनुष्य सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।
इसी कौशल को इन कहानियों में बड़ी बानगी से उतारा गया है। यही कहानियां पंचतंत्र के नाम से जानी जाती हैं। शताब्दियों पुरानी ये कहानियां, जो संस्कृत में लिखी गई थीं, आज भी विश्व-साहित्य की अमर थाती हैं।
बन्दर का कलेजा
किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पर एक बन्दर रहता था। उस
पेड़ पर बड़े मीठे-रसीले फल लगते थे। बन्दर उन्हें भर पेट खाता और मौज
उड़ाता। वह अकेला ही मज़े से दिन गुज़ार रहा था।
एक दिन एक मगर नदी से निकलकर उस पेड़ के तले आया जिस पर बन्दर रहता था। पेड़ पर से बन्दर ने पूछा, ‘‘तू कौन है, भाई ?’’
मगर ने ऊपर बन्दर की ओर देखकर कहा, ‘‘मैं मगर हूं। बड़ी दूर से आया हूँ। खाने की तलाश में यों ही घूम रहा हूं।’’
बन्दर ने कहा, ‘‘यहां पर खाने की कोई कमी नहीं है। इस पेड़ पर ढेरों फल लगते हैं। चखकर देखो। अच्छे लगे तो और दूँगा। जितने जी चाहे खाओ।’’ यह कहकर बन्दर ने कुछ फल तोड़कर मगर की ओर फेंक दिये।
मगर ने उन्हें चखकर कहा, ‘‘वाह, ये तो बड़े मज़ेदार फल हैं।’’
बन्दर ने और भी ढेर से फल गिरा दिए। मगर उन्हें भी चट कर गया और बोला, ‘‘कल फिर आऊँगा। फल खिलाओगे ?’’
बन्दर ने कहा, ‘‘क्यों नहीं ? तुम मेरे मेहमान हो। रोज आओ और जितने जी चाहे खाओ।’’
मगर अगले दिन आने का वादा करके चला गया।
दूसरे दिन मगर फिर आया। उसने भर पेट फल खाये और बन्दर के साथ गपशप करता रहा। बन्दर अकेला था। एक दोस्त पाकर बहुत खुश हुआ।
अब तो मगर रोज आने लगा। मगर और बन्दर दोनों भरपेट फल खाते और बड़ी देर तक बातचीत करते रहते।
एक दिन वो यों ही अपने-अपने घरों की बातें करने लगे। बातों-बातों में बन्दर ने कहा, ‘‘मगर भाई, मैं तो दुनिया में अकेला हूँ और तुम्हारे जैसा मित्र पाकर अपने को भाग्यशाली समझता हूँ।’’
मगर ने कहा, ‘‘मैं तो अकेला नहीं हूँ, भाई। घर में मेरी पत्नी है। नदी के उस पार हमारा घर है।’’
बन्दर ने कहा, ‘‘तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारी पत्नी है। मैं भाभी के लिए भी फल भेजता।’’
मगर ने कहा कि वे बड़े शौक से अपनी पत्नी के लिए ये रसीले फल ले जायेगा। जब मगर जाने लगा तो बन्दर ने उसकी पत्नी के लिए बहुत से पके हुए फल तोड़कर दे दिये।
उस दिन मगर अपनी पत्नी के लिए बन्दर की यह भेंट ले गया।
मगर की पत्नी को फल बहुत पसन्द आये। उसने मगर से कहा कि वह रोज इसी तरह रसीले फल लाया करे। मगर ने कहा कि वह कोशिश करेगा।
धीरे-धीरे बन्दर और मगर में गहरी दोस्ती हो गई। मगर रोज बन्दर से मिलने जाता। जी भरकर फल खाता और अपनी पत्नी के लिये भी ले जाता।
मगर की पत्नी को फल खाना अच्छा लगता था।, पर अपने पति का देर से घर लौटना पसन्द नहीं था। वह इसे रोकना चाहती थी। एक दिन उसने कहा, ‘‘मुझे लगता है तुम झूठ बोलते हो। भला मगर और बन्दर में कहीं दोस्ती होती है ? मगर तो बन्दर को मार कर खा जाते हैं।’
मगर ने कहा, ‘‘मैं सच बोल रहा हूं। वह बन्दर बहुत भला है। हम दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हैं। बेचारा रोज तुम्हारे लिए इतने सारे बढ़िया फल भेजता है। बन्दर मेरा दोस्त न होता तो मैं फल कहां से लाता ? मैं खुद तो पेड़ पर चढ़ नहीं चढ़ सकता।’’
मगर की पत्नी बड़ी चालाक थी। उसने सोचा, ‘‘अगर वह बन्दर रोज-रोज इतने मीठे फल खाता है तो उसका मांस कितना मीठा होगा। यदि वह मिल जाये तो कितना मज़ा आ जाये।’ यह सोचकर उसने मगर से कहा, ‘‘एक दिन तुम अपने दोस्त को घर ले आओ। मैं उससे मिलना चाहती हूँ।’’
मगर ने कहा, ‘‘नहीं, नहीं, यह कैसे हो सकता है ? वह तो ज़मीन पर रहने वाला जानवर है। पानी में तो डूब जायेगा।’’
उसकी पत्नी ने कहा, ‘‘तुम उसको न्योता तो दो। बन्दर चालाक होते हैं। वह यहां आने का कोई उपाय निकाल ही लेगा।’’
मगर बन्दर को न्योता नहीं देना चाहता था। परन्तु उसकी पत्नी रोज उससे पूछती कि बन्दर कब आयेगा। मगर कोई न कोई बहाना बना देता। ज्यों-ज्यों दिन गुज़रते जाते बन्दर के मांस के लिए मगर की पत्नी की इच्छी तीव्र होती जाती।
मगर की पत्नी ने एक तरकीब सोची।
एक दिन उसने बीमारी का बहाना किया और ऐसे आंसू बहाने लगी मानो उसे बहुत दर्द हो रहा है। मगर अपनी पत्नी की बीमारी से बहुत दुखी था। वह उसके पास बैठकर बोला, ‘‘बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या करूं ?’’
पत्नी बोली, ‘‘मैं बहुत बीमार हूं। मैंने जब वैद्य से पूछा तो वह कहता है कि जब तक मैं बन्दर का कलेजा नहीं खाऊँगी तब तक मैं ठीक नहीं हो सकूंगी।’’
‘‘बन्दर का कलेजा ?’’ मगर ने आश्चर्य से पूछा।
मगर की पत्नी ने कराहते हुए कहा, ‘‘हां, बन्दर का कलेजा। अगर तुम चाहते हो कि मैं बच जाऊं तो अपने मित्र बन्दर का कलेजा लाकर मुझको खिलाओ।’’
मगर ने दुखी होकर कहा, ‘‘यह भला कैसे हो सकता है ? मेरा वही तो एक दोस्त है। उसको भला मैं कैसे मार सकता हूँ ?’’
पत्नी ने कहा, ‘‘अच्छी बात है। अगर तुझको तुम्हारा दोस्त ज्यादा प्यारा है तो उसी के पास जाकर कहो। तुम तो चाहते ही हो कि मैं मर जाऊँ।’’
मगर संकट में पड़ गया। उसकी समझ में नहीं आया कि कि वह क्या करे। बन्दर का कलेजा लाता है तो उसका प्यारा दोस्त मारा जाता है। नहीं लाता है तो उसकी पत्नी मर जाती है। वह रोने लगा और बोला, ‘‘मेरा एक ही तो दोस्त है। उसकी जान मैं कैसे ले सकता हूं ?’’
पत्नी ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ ? तुम मगर हो। मगर तो जीवों को मारते ही हैं।’’
मगर और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही थी। पर इतना वह ज़रूर जानता था। कि वह अपनी पत्नी का जीवन जैसे भी हो बचायेगा।
यह सोचकर वह बन्दर के पास गया। बन्दर मगर का रास्ता देख रहा था। उसने पूछा, ‘‘क्यों दोस्त, आज इतनी देर कैसे हो गई ? सब कुशल तो है न ?’’
मगर न कहा ?’’ मेरा और मेरी पत्नी का झगड़ा हो गया है। वह कहती है कि मैं तुम्हारा दोस्त नहीं हूं क्योंकि मैंने तुम्हें अपने घर नहीं बुलाया। वह तुमसे मिलना चाहती है। उसने कहा है कि मैं तुमको अपने साथ ले आऊं। अगर नहीं चलोगे तो वह मुझसे फिर झगड़ेगी।’’
बन्दर ने हँसकर कहा, ‘‘बस इतनी-सी बात थी ? मैं भी भाभी से मिलना चाहता हूं। पर मैं पानी में कैसे चलूंगा ? मैं तो डूब जाऊँगा।’’
मगर ने कहा, ‘‘उसकी चिन्ता मत करो। मैं तुमको अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाऊंगा।’’ बन्दर राजी हो गया। वह पेड़ से उतरा और उछलकर मगर की पीठ पर सवार हो गया।
नदी के बीच में पहुंचकर मगर आने की बजाय पानी में डुबकी लगाने को था कि बन्दर डर गया और बोला, ‘‘क्या कर रहे हो भाई ? डुबकी लगाई तो मैं डूब जाऊँगा।’’
मगर ने कहा, ‘‘मैं तो डुबकी लगाऊँगा। मैं तुमको मारने ही तो लाया हूँ।’’
यह सुनकर बन्दर संकट में पड़ गया। उसने पूछा, ‘क्यों भाई, ‘‘मुझे क्यों मारना चाहते हो ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?’’
मगर ने कहा, ‘‘मेरी पत्नी बीमार है। वैद्य ने उसका एक ही इलाज बताया है। यदि उसको बन्दर का कलेजा खिलाया जाये तो वह बच जायेगी। यहाँ और कोई बन्दर नहीं है। मैं तुम्हारा ही कलेजा अपनी पत्नी को खिलाऊंगा।’’
पहले तो बन्दर भौचक्का-सा रह गया। फिर उसने सोचा कि अब केवल चालाकी से ही अपनी जान बचाई जा सकती है उसने कहा, ‘‘मेरे दोस्त ! यह तुमने पहले ही क्यों नहीं बताया ? मैं तो भाभी को बचाने के लिए खुशी-खुशी अपना कलेजा दे देता। लेकिन वह तो नदी किनारे पेड़ पर रखा है। मैं उसे हिफाजत के लिये वहीं रखता हूं। तुमने पहले ही बता दिया होता तो मैं उसे साथ ले आता।’’
‘‘यह बात है ?’’ मगर बोला।
‘‘हां जल्दी वापस चलो। कहीं तुम्हारी पत्नी की बीमारी बढ़ न जाये।’’
मगर वापस पेड़ की ओर वापस तैरने लगा और बड़ी तेज़ी से वहां पहुंच गया।
किनारे पहुंचते ही बन्दर छलांग मारकर पेड़ पर चढ़ गया। उसने हँसकर मगर से कहा, ‘‘जाओ मूर्खराज अपने घर लौट जाओ। अपनी दुष्ट पत्नी से कहना कि तुम दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हो। भला कहीं कोई अपना कलेजा निकाल कर अलग रख सकता है ?’’
एक दिन एक मगर नदी से निकलकर उस पेड़ के तले आया जिस पर बन्दर रहता था। पेड़ पर से बन्दर ने पूछा, ‘‘तू कौन है, भाई ?’’
मगर ने ऊपर बन्दर की ओर देखकर कहा, ‘‘मैं मगर हूं। बड़ी दूर से आया हूँ। खाने की तलाश में यों ही घूम रहा हूं।’’
बन्दर ने कहा, ‘‘यहां पर खाने की कोई कमी नहीं है। इस पेड़ पर ढेरों फल लगते हैं। चखकर देखो। अच्छे लगे तो और दूँगा। जितने जी चाहे खाओ।’’ यह कहकर बन्दर ने कुछ फल तोड़कर मगर की ओर फेंक दिये।
मगर ने उन्हें चखकर कहा, ‘‘वाह, ये तो बड़े मज़ेदार फल हैं।’’
बन्दर ने और भी ढेर से फल गिरा दिए। मगर उन्हें भी चट कर गया और बोला, ‘‘कल फिर आऊँगा। फल खिलाओगे ?’’
बन्दर ने कहा, ‘‘क्यों नहीं ? तुम मेरे मेहमान हो। रोज आओ और जितने जी चाहे खाओ।’’
मगर अगले दिन आने का वादा करके चला गया।
दूसरे दिन मगर फिर आया। उसने भर पेट फल खाये और बन्दर के साथ गपशप करता रहा। बन्दर अकेला था। एक दोस्त पाकर बहुत खुश हुआ।
अब तो मगर रोज आने लगा। मगर और बन्दर दोनों भरपेट फल खाते और बड़ी देर तक बातचीत करते रहते।
एक दिन वो यों ही अपने-अपने घरों की बातें करने लगे। बातों-बातों में बन्दर ने कहा, ‘‘मगर भाई, मैं तो दुनिया में अकेला हूँ और तुम्हारे जैसा मित्र पाकर अपने को भाग्यशाली समझता हूँ।’’
मगर ने कहा, ‘‘मैं तो अकेला नहीं हूँ, भाई। घर में मेरी पत्नी है। नदी के उस पार हमारा घर है।’’
बन्दर ने कहा, ‘‘तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारी पत्नी है। मैं भाभी के लिए भी फल भेजता।’’
मगर ने कहा कि वे बड़े शौक से अपनी पत्नी के लिए ये रसीले फल ले जायेगा। जब मगर जाने लगा तो बन्दर ने उसकी पत्नी के लिए बहुत से पके हुए फल तोड़कर दे दिये।
उस दिन मगर अपनी पत्नी के लिए बन्दर की यह भेंट ले गया।
मगर की पत्नी को फल बहुत पसन्द आये। उसने मगर से कहा कि वह रोज इसी तरह रसीले फल लाया करे। मगर ने कहा कि वह कोशिश करेगा।
धीरे-धीरे बन्दर और मगर में गहरी दोस्ती हो गई। मगर रोज बन्दर से मिलने जाता। जी भरकर फल खाता और अपनी पत्नी के लिये भी ले जाता।
मगर की पत्नी को फल खाना अच्छा लगता था।, पर अपने पति का देर से घर लौटना पसन्द नहीं था। वह इसे रोकना चाहती थी। एक दिन उसने कहा, ‘‘मुझे लगता है तुम झूठ बोलते हो। भला मगर और बन्दर में कहीं दोस्ती होती है ? मगर तो बन्दर को मार कर खा जाते हैं।’
मगर ने कहा, ‘‘मैं सच बोल रहा हूं। वह बन्दर बहुत भला है। हम दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हैं। बेचारा रोज तुम्हारे लिए इतने सारे बढ़िया फल भेजता है। बन्दर मेरा दोस्त न होता तो मैं फल कहां से लाता ? मैं खुद तो पेड़ पर चढ़ नहीं चढ़ सकता।’’
मगर की पत्नी बड़ी चालाक थी। उसने सोचा, ‘‘अगर वह बन्दर रोज-रोज इतने मीठे फल खाता है तो उसका मांस कितना मीठा होगा। यदि वह मिल जाये तो कितना मज़ा आ जाये।’ यह सोचकर उसने मगर से कहा, ‘‘एक दिन तुम अपने दोस्त को घर ले आओ। मैं उससे मिलना चाहती हूँ।’’
मगर ने कहा, ‘‘नहीं, नहीं, यह कैसे हो सकता है ? वह तो ज़मीन पर रहने वाला जानवर है। पानी में तो डूब जायेगा।’’
उसकी पत्नी ने कहा, ‘‘तुम उसको न्योता तो दो। बन्दर चालाक होते हैं। वह यहां आने का कोई उपाय निकाल ही लेगा।’’
मगर बन्दर को न्योता नहीं देना चाहता था। परन्तु उसकी पत्नी रोज उससे पूछती कि बन्दर कब आयेगा। मगर कोई न कोई बहाना बना देता। ज्यों-ज्यों दिन गुज़रते जाते बन्दर के मांस के लिए मगर की पत्नी की इच्छी तीव्र होती जाती।
मगर की पत्नी ने एक तरकीब सोची।
एक दिन उसने बीमारी का बहाना किया और ऐसे आंसू बहाने लगी मानो उसे बहुत दर्द हो रहा है। मगर अपनी पत्नी की बीमारी से बहुत दुखी था। वह उसके पास बैठकर बोला, ‘‘बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या करूं ?’’
पत्नी बोली, ‘‘मैं बहुत बीमार हूं। मैंने जब वैद्य से पूछा तो वह कहता है कि जब तक मैं बन्दर का कलेजा नहीं खाऊँगी तब तक मैं ठीक नहीं हो सकूंगी।’’
‘‘बन्दर का कलेजा ?’’ मगर ने आश्चर्य से पूछा।
मगर की पत्नी ने कराहते हुए कहा, ‘‘हां, बन्दर का कलेजा। अगर तुम चाहते हो कि मैं बच जाऊं तो अपने मित्र बन्दर का कलेजा लाकर मुझको खिलाओ।’’
मगर ने दुखी होकर कहा, ‘‘यह भला कैसे हो सकता है ? मेरा वही तो एक दोस्त है। उसको भला मैं कैसे मार सकता हूँ ?’’
पत्नी ने कहा, ‘‘अच्छी बात है। अगर तुझको तुम्हारा दोस्त ज्यादा प्यारा है तो उसी के पास जाकर कहो। तुम तो चाहते ही हो कि मैं मर जाऊँ।’’
मगर संकट में पड़ गया। उसकी समझ में नहीं आया कि कि वह क्या करे। बन्दर का कलेजा लाता है तो उसका प्यारा दोस्त मारा जाता है। नहीं लाता है तो उसकी पत्नी मर जाती है। वह रोने लगा और बोला, ‘‘मेरा एक ही तो दोस्त है। उसकी जान मैं कैसे ले सकता हूं ?’’
पत्नी ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ ? तुम मगर हो। मगर तो जीवों को मारते ही हैं।’’
मगर और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसकी बुद्धि काम नहीं कर रही थी। पर इतना वह ज़रूर जानता था। कि वह अपनी पत्नी का जीवन जैसे भी हो बचायेगा।
यह सोचकर वह बन्दर के पास गया। बन्दर मगर का रास्ता देख रहा था। उसने पूछा, ‘‘क्यों दोस्त, आज इतनी देर कैसे हो गई ? सब कुशल तो है न ?’’
मगर न कहा ?’’ मेरा और मेरी पत्नी का झगड़ा हो गया है। वह कहती है कि मैं तुम्हारा दोस्त नहीं हूं क्योंकि मैंने तुम्हें अपने घर नहीं बुलाया। वह तुमसे मिलना चाहती है। उसने कहा है कि मैं तुमको अपने साथ ले आऊं। अगर नहीं चलोगे तो वह मुझसे फिर झगड़ेगी।’’
बन्दर ने हँसकर कहा, ‘‘बस इतनी-सी बात थी ? मैं भी भाभी से मिलना चाहता हूं। पर मैं पानी में कैसे चलूंगा ? मैं तो डूब जाऊँगा।’’
मगर ने कहा, ‘‘उसकी चिन्ता मत करो। मैं तुमको अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाऊंगा।’’ बन्दर राजी हो गया। वह पेड़ से उतरा और उछलकर मगर की पीठ पर सवार हो गया।
नदी के बीच में पहुंचकर मगर आने की बजाय पानी में डुबकी लगाने को था कि बन्दर डर गया और बोला, ‘‘क्या कर रहे हो भाई ? डुबकी लगाई तो मैं डूब जाऊँगा।’’
मगर ने कहा, ‘‘मैं तो डुबकी लगाऊँगा। मैं तुमको मारने ही तो लाया हूँ।’’
यह सुनकर बन्दर संकट में पड़ गया। उसने पूछा, ‘क्यों भाई, ‘‘मुझे क्यों मारना चाहते हो ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?’’
मगर ने कहा, ‘‘मेरी पत्नी बीमार है। वैद्य ने उसका एक ही इलाज बताया है। यदि उसको बन्दर का कलेजा खिलाया जाये तो वह बच जायेगी। यहाँ और कोई बन्दर नहीं है। मैं तुम्हारा ही कलेजा अपनी पत्नी को खिलाऊंगा।’’
पहले तो बन्दर भौचक्का-सा रह गया। फिर उसने सोचा कि अब केवल चालाकी से ही अपनी जान बचाई जा सकती है उसने कहा, ‘‘मेरे दोस्त ! यह तुमने पहले ही क्यों नहीं बताया ? मैं तो भाभी को बचाने के लिए खुशी-खुशी अपना कलेजा दे देता। लेकिन वह तो नदी किनारे पेड़ पर रखा है। मैं उसे हिफाजत के लिये वहीं रखता हूं। तुमने पहले ही बता दिया होता तो मैं उसे साथ ले आता।’’
‘‘यह बात है ?’’ मगर बोला।
‘‘हां जल्दी वापस चलो। कहीं तुम्हारी पत्नी की बीमारी बढ़ न जाये।’’
मगर वापस पेड़ की ओर वापस तैरने लगा और बड़ी तेज़ी से वहां पहुंच गया।
किनारे पहुंचते ही बन्दर छलांग मारकर पेड़ पर चढ़ गया। उसने हँसकर मगर से कहा, ‘‘जाओ मूर्खराज अपने घर लौट जाओ। अपनी दुष्ट पत्नी से कहना कि तुम दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हो। भला कहीं कोई अपना कलेजा निकाल कर अलग रख सकता है ?’’
खरगोश की चतुराई
किसी घने वन में एक बहुत बड़ा शेर रहता था। वह रोज शिकार पर निकलता और एक
ही नहीं, दो नहीं कई-कई जानवरों का काम तमाम देता। जंगल के जानवर डरने लगे
कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि जंगल में कोई
भी जानवर नहीं बचेगा।
सारे जंगल में सनसनी फैल गई। शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना ज़रूरी था। एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्न पर विचार करने लगे। अन्त में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करें।
दूसरे दिन जानवरों के एकदल शेर के पास पहुंचा। उनके अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, ‘‘क्या बात है ? तुम सब यहां क्यों आ रहे हो ?’’
जानवर दल के नेता ने कहा, ‘‘महाराज, हम आपके पास निवेदन करने आये हैं। आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा। जब आप शिकार करने निकलते हैं तो बहुत जानवर मार डालते हैं। आप सबको खा भी नहीं पाते। इस तरह से हमारी संख्या कम होती जा रही है। अगर ऐसा ही होता रहा तो कुछ ही दिनों में जंगल में आपके सिवाय और कोई भी नहीं बचेगा। प्रजा के बिना राजा भी कैसे रह सकता है ? यदि हम सभी मर जायेंगे तो आप भी राजा नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आप सदा हमारे राजा बने रहें। आपसे हमारी विनती है कि आप अपने घर पर ही रहा करें। हर रोज स्वयं आपके खाने के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे। इस तरह से राजा और प्रजा दोनों ही चैन से रह सकेंगे।’’
शेर को लगा कि जानवरों की बात में सच्चाई है। उसने पलभर सोचा, फिर बोला अच्छी बात नहीं है। मैं तुम्हारे सुझाव को मान लेता हूं। लेकिन याद रखना, अगर किसी भी दिन तुमने मेरे खाने के लिये पूरा भोजन नहीं भेजा तो मैं जितने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा।’’
जानवरों के पास तो और कोई चारा नहीं। इसलिये उन्होंने शेर की शर्त मान ली और अपने-अपने घर चले गये।
उस दिन से हर रोज शेर के खाने के लिये एक जानवर भेजा जाने लगा। इसके लिये जंगल में रहने वाले सब जानवरों में से एक-एक जानवर, बारी-बारी से चुना जाता था। कुछ दिन बाद खरगोशों की बारी भी आ गई। शेर के भोजन के लिये एक नन्हें से खरगोश को चुना गया। वह खरगोश जितना छोटा था, उतना ही चतुर भी था। उसने सोचा, बेकार में शेर के हाथों मरना मूर्खता है अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिये, और हो सके तो कोई ऐसी तरकीब ढूंढ़नी चाहिये जिसे सभी को इस मुसीबत से सदा के लिए छुटकारा मिल जाये। आखिर उसने एक तरकीब सोच ही निकाली।
खरगोश धीरे-धीरे आराम से शेर के घर की ओर चल पड़ा। जब वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी।
भूख के मारे शेर का बुरा हाल हो रहा था। जब उसने सिर्फ एक छोटे से खरगोश को अपनी ओर आते देखा तो गुस्से से बौखला उठा और गरजकर बोला, ‘‘किसने तुम्हें भेजा है ? एक तो पिद्दी जैसे हो, दूसरे इतनी देर से आ रहे हो। जिन बेवकूफों ने तुम्हें भेजा है मैं उन सबको ठीक करूंगा। एक-एक का काम तमाम न किया तो मेरा नाम भी शेर नहीं।’’
नन्हे खरोगश ने आदर से ज़मीन तक झुककर, ‘‘महाराज, अगर आप कृपा करके मेरी बात सुन लें तो मुझे या और जानवरों को दोष नहीं देंगे। वे तो जानते थे कि एक छोटा सा खरगोश आपके भोजन के लिए पूरा नहीं पड़ेगा, ‘इसलिए उन्होंने छह खरगोश भेजे थे। लेकिन रास्ते में हमें एक और शेर मिल गया। उसने पांच खरगोशों को मारकर खा लिया।’’
यह सुनते ही शेर दहाड़कर बोला, ‘‘क्या कहा ? दूसरा शेर ? कौन है वह ? तुमने उसे कहां देखा ?’’
‘‘महाराज, वह तो बहुत ही बड़ा शेर है’’, खरगोश ने कहा, ‘‘वह ज़मीन के अन्दर बनी एक बड़ी गुफा में से निकला था। वह तो मुझे ही मारने जा रहा था। पर मैंने उससे कहा, ‘सरकार, आपको पता नहीं कि आपने क्या अन्धेर कर दिया है। हम सब अपने महाराज के भोजन के लिये जा रहे थे, लेकिन आपने उनका सारा खाना खा लिया है। हमारे महाराज ऐसी बातें सहन नहीं करेंगे। वे ज़रूर ही यहाँ आकर आपको मार डालेंगे।’
‘‘इस पर उसने पूछा, ‘कौन है तुम्हारा राजा ?’ मैंने जवाब दिया, ‘हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है।’
‘‘महाराज, ‘मेरे ऐसा कहते ही वह गुस्से से लाल-पीला होकर बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा सिर्फ मैं हूं। यहां सब जानवर मेरी प्रजा हैं। मैं उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता हूं। जिस मूर्ख को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे सामने हाजिर करो। मैं उसे बताऊंगा कि असली राजा कौन है।’ महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको लिवाने के लिए मुझे यहां भेज दिया।’’
खरगोश की बात सुनकर शेर को बड़ा गुस्सा आया और वह बार-बार गरजने लगा। उसकी भयानक गरज से सारा जंगल दहलने लगा।
‘‘मुझे फौरन उस मूर्ख का पता बताओ’’, शेर ने दहाड़कर कहा, ‘‘जब तक मैं उसे जान से न मार दूँगा मुझे चैन नहीं मिलेगा।’’
‘‘बहुत अच्छा महाराज,’’ खरगोश ने कहा ‘‘मौत ही उस दुष्ट की सजा है। अगर मैं और बड़ा और मजबूत होता तो मैं खुद ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता।’’
‘‘चलो, ‘रास्ता दिखाओ,’’ शेर ने कहा, ‘‘फौरन बताओ किधर चलना है ?’’
‘‘इधर आइये महाराज, इधर, ‘‘खगगोश रास्ता दिखाते हुआ शेर को एक कुएँ के पास ले गया और बोला, ‘‘महाराज, वह दुष्ट शेर ज़मीन के नीचे किले में रहता है। जरा सावधान रहियेगा। किले में छुपा दुश्मन खतरनाक होता है।’’
‘‘मैं उससे निपट लूँगा,’’ शेर ने कहा, ‘‘तुम यह बताओ कि वह है कहाँ ?’’
‘‘पहले जब मैंने उसे देखा था तब तो वह यहीं बाहर खड़ा था। लगता है आपको आता देखकर वह किले में घुस गया। आइये मैं आपको दिखाता हूँ।’’
खरगोश ने कुएं के नजदीक आकर शेर से अन्दर झांकने के लिये कहा। शेर ने कुएं के अन्दर झांका तो उसे कुएं के पानी में अपनी परछाईं दिखाई दी।
परछाईं को देखकर शेर ज़ोर से दहाड़ा। कुएं के अन्दर से आती हुई अपने ही दहाड़ने की गूंज सुनकर उसने समझा कि दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है। दुश्मन को तुरंत मार डालने के इरादे से वह फौरन कुएं में कूद पड़ा।
कूदते ही पहले तो वह कुएं की दीवार से टकराया फिर धड़ाम से पानी में गिरा और डूबकर मर गया। इस तरह चतुराई से शेर से छुट्टी पाकर नन्हा खरगोश घर लौटा। उसने जंगल के जानवरों को शेर के मारे जाने की कहानी सुनाई। दुश्मन के मारे जाने की खबर से सारे जंगल में खुशी फैल गई। जंगल के सभी जानवर खरगोश की जय-जयकार करने लगे।
सारे जंगल में सनसनी फैल गई। शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना ज़रूरी था। एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्न पर विचार करने लगे। अन्त में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करें।
दूसरे दिन जानवरों के एकदल शेर के पास पहुंचा। उनके अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, ‘‘क्या बात है ? तुम सब यहां क्यों आ रहे हो ?’’
जानवर दल के नेता ने कहा, ‘‘महाराज, हम आपके पास निवेदन करने आये हैं। आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा। जब आप शिकार करने निकलते हैं तो बहुत जानवर मार डालते हैं। आप सबको खा भी नहीं पाते। इस तरह से हमारी संख्या कम होती जा रही है। अगर ऐसा ही होता रहा तो कुछ ही दिनों में जंगल में आपके सिवाय और कोई भी नहीं बचेगा। प्रजा के बिना राजा भी कैसे रह सकता है ? यदि हम सभी मर जायेंगे तो आप भी राजा नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आप सदा हमारे राजा बने रहें। आपसे हमारी विनती है कि आप अपने घर पर ही रहा करें। हर रोज स्वयं आपके खाने के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे। इस तरह से राजा और प्रजा दोनों ही चैन से रह सकेंगे।’’
शेर को लगा कि जानवरों की बात में सच्चाई है। उसने पलभर सोचा, फिर बोला अच्छी बात नहीं है। मैं तुम्हारे सुझाव को मान लेता हूं। लेकिन याद रखना, अगर किसी भी दिन तुमने मेरे खाने के लिये पूरा भोजन नहीं भेजा तो मैं जितने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा।’’
जानवरों के पास तो और कोई चारा नहीं। इसलिये उन्होंने शेर की शर्त मान ली और अपने-अपने घर चले गये।
उस दिन से हर रोज शेर के खाने के लिये एक जानवर भेजा जाने लगा। इसके लिये जंगल में रहने वाले सब जानवरों में से एक-एक जानवर, बारी-बारी से चुना जाता था। कुछ दिन बाद खरगोशों की बारी भी आ गई। शेर के भोजन के लिये एक नन्हें से खरगोश को चुना गया। वह खरगोश जितना छोटा था, उतना ही चतुर भी था। उसने सोचा, बेकार में शेर के हाथों मरना मूर्खता है अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिये, और हो सके तो कोई ऐसी तरकीब ढूंढ़नी चाहिये जिसे सभी को इस मुसीबत से सदा के लिए छुटकारा मिल जाये। आखिर उसने एक तरकीब सोच ही निकाली।
खरगोश धीरे-धीरे आराम से शेर के घर की ओर चल पड़ा। जब वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी।
भूख के मारे शेर का बुरा हाल हो रहा था। जब उसने सिर्फ एक छोटे से खरगोश को अपनी ओर आते देखा तो गुस्से से बौखला उठा और गरजकर बोला, ‘‘किसने तुम्हें भेजा है ? एक तो पिद्दी जैसे हो, दूसरे इतनी देर से आ रहे हो। जिन बेवकूफों ने तुम्हें भेजा है मैं उन सबको ठीक करूंगा। एक-एक का काम तमाम न किया तो मेरा नाम भी शेर नहीं।’’
नन्हे खरोगश ने आदर से ज़मीन तक झुककर, ‘‘महाराज, अगर आप कृपा करके मेरी बात सुन लें तो मुझे या और जानवरों को दोष नहीं देंगे। वे तो जानते थे कि एक छोटा सा खरगोश आपके भोजन के लिए पूरा नहीं पड़ेगा, ‘इसलिए उन्होंने छह खरगोश भेजे थे। लेकिन रास्ते में हमें एक और शेर मिल गया। उसने पांच खरगोशों को मारकर खा लिया।’’
यह सुनते ही शेर दहाड़कर बोला, ‘‘क्या कहा ? दूसरा शेर ? कौन है वह ? तुमने उसे कहां देखा ?’’
‘‘महाराज, वह तो बहुत ही बड़ा शेर है’’, खरगोश ने कहा, ‘‘वह ज़मीन के अन्दर बनी एक बड़ी गुफा में से निकला था। वह तो मुझे ही मारने जा रहा था। पर मैंने उससे कहा, ‘सरकार, आपको पता नहीं कि आपने क्या अन्धेर कर दिया है। हम सब अपने महाराज के भोजन के लिये जा रहे थे, लेकिन आपने उनका सारा खाना खा लिया है। हमारे महाराज ऐसी बातें सहन नहीं करेंगे। वे ज़रूर ही यहाँ आकर आपको मार डालेंगे।’
‘‘इस पर उसने पूछा, ‘कौन है तुम्हारा राजा ?’ मैंने जवाब दिया, ‘हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है।’
‘‘महाराज, ‘मेरे ऐसा कहते ही वह गुस्से से लाल-पीला होकर बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा सिर्फ मैं हूं। यहां सब जानवर मेरी प्रजा हैं। मैं उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता हूं। जिस मूर्ख को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे सामने हाजिर करो। मैं उसे बताऊंगा कि असली राजा कौन है।’ महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको लिवाने के लिए मुझे यहां भेज दिया।’’
खरगोश की बात सुनकर शेर को बड़ा गुस्सा आया और वह बार-बार गरजने लगा। उसकी भयानक गरज से सारा जंगल दहलने लगा।
‘‘मुझे फौरन उस मूर्ख का पता बताओ’’, शेर ने दहाड़कर कहा, ‘‘जब तक मैं उसे जान से न मार दूँगा मुझे चैन नहीं मिलेगा।’’
‘‘बहुत अच्छा महाराज,’’ खरगोश ने कहा ‘‘मौत ही उस दुष्ट की सजा है। अगर मैं और बड़ा और मजबूत होता तो मैं खुद ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता।’’
‘‘चलो, ‘रास्ता दिखाओ,’’ शेर ने कहा, ‘‘फौरन बताओ किधर चलना है ?’’
‘‘इधर आइये महाराज, इधर, ‘‘खगगोश रास्ता दिखाते हुआ शेर को एक कुएँ के पास ले गया और बोला, ‘‘महाराज, वह दुष्ट शेर ज़मीन के नीचे किले में रहता है। जरा सावधान रहियेगा। किले में छुपा दुश्मन खतरनाक होता है।’’
‘‘मैं उससे निपट लूँगा,’’ शेर ने कहा, ‘‘तुम यह बताओ कि वह है कहाँ ?’’
‘‘पहले जब मैंने उसे देखा था तब तो वह यहीं बाहर खड़ा था। लगता है आपको आता देखकर वह किले में घुस गया। आइये मैं आपको दिखाता हूँ।’’
खरगोश ने कुएं के नजदीक आकर शेर से अन्दर झांकने के लिये कहा। शेर ने कुएं के अन्दर झांका तो उसे कुएं के पानी में अपनी परछाईं दिखाई दी।
परछाईं को देखकर शेर ज़ोर से दहाड़ा। कुएं के अन्दर से आती हुई अपने ही दहाड़ने की गूंज सुनकर उसने समझा कि दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है। दुश्मन को तुरंत मार डालने के इरादे से वह फौरन कुएं में कूद पड़ा।
कूदते ही पहले तो वह कुएं की दीवार से टकराया फिर धड़ाम से पानी में गिरा और डूबकर मर गया। इस तरह चतुराई से शेर से छुट्टी पाकर नन्हा खरगोश घर लौटा। उसने जंगल के जानवरों को शेर के मारे जाने की कहानी सुनाई। दुश्मन के मारे जाने की खबर से सारे जंगल में खुशी फैल गई। जंगल के सभी जानवर खरगोश की जय-जयकार करने लगे।
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